भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार के दुर्दिन में / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्यार के दुर्दिन में
न मृत्यु तुम्हे छू पाएगी
न बुढ़ापा
ऋतुओं का प्रभाव नहीं होगा तुम्हारे ऊपर

कविता के अन्तिम पाठक के सामने
उस दिन भी यही और यही रहेगा तुम्हारा रूप
जब पृथ्वी के आख़िरी बसन्त का आख़िरी फूल
आख़िरी बार खिल कर मुरझा रहा होगा

मेरे कंधे पर झुका हुआ तुम्हारा चेहरा
मेरी गोद में रखा तुम्हारा सिर
तब भी - तब भी ऐसा ही रहेगा
शताब्दियों के सूर्यास्त की अशुभ संध्या
उतर रही होगी आकाश से जब धीरे-धीरे।

ऋतुओं का प्रभाव नहीं होगा तुम्हारे ऊपर
न मृत्यु तुम्हें छू पाएगी
न बुढ़ापा।

प्यार के दुर्दिन में
संसार के हताश प्रेमियों के लिए
कभी न टूटने वाले मज़बूत सहारे का काम करती रहेगी तुम्हारी याद।


रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा