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प्यार ,प्यार है फिर भी / शलभ श्रीराम सिंह

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अन्धा ही सही
प्यार, प्यार है फिर भी

सुन्दर की सुन्दरता को निखारता
सुन्दर बनाता असुन्दर को
प्यार, प्यार है फिर भी

उदार इतना
कि दे दे सब कुछ...
नया जीवन
नया प्राण
नई आशा-अभिलाषा...

विश्वास ऐसा
पहाड़ घुटने टेक दे...
पानी भरे समंदर...
सारे फूल बसंत के
पृथ्वी की सारी हरियाली
झरनों की गति
आँखों को
शरीर को
मन को दे दे एक पल में
अन्धा ही सही प्यार, प्यार है फिर भी।


रचनाकाल : 1991 विदिशा