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प्यास की जड़ें / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
हर प्यास को चाहिए
एक कुआं मीठे पानी से भरा
प्यास के प्यार में फलते-फूलते हैं कुएं
भटकती प्यास अन्ततः
ढूंढ लेती अपना जलस्त्रोत
दूरियां कोई मायने नहीं रखती
प्यास की राह में।
आदमी जब डर जाता है
अपनी पैरों की बेड़ियां तोड़ने में
अथवा छोटी पड़ जाती उसकी छलांग
प्यास तब खुद उड़कर पाट देती दूरियां।
एक लाचार आदमी दिन-रात जब
लगा रहता जीवन की आपा-धापी में
तब दूर-दूर की यात्राएं कर आती हैं
प्यास की जड़ें चुपचाप।