ढँक देता है प्रकाश अपनी मरणशील दीप्ति से तुम्हें
अनमने फीके दुख खड़े हैं उस राह
साँझ की झिलमिली के पुराने प्रेरकों के विरुद्ध
वे लगाते चक्कर तुम्हारे चारों तरफ़
वाणी रहित, मेरी दोस्त, मैं अकेला
अकर्मण्य समय के इस एकान्त में
भरा हूँ उमंग और जोश की उम्रों से,
इस बरबाद दिन का निरा वारिस
सूर्य से गिरती है एक शाख फलों से लदी, तुम्हारे गहरे पैरहन पर
रात की विशाल जड़ें अँकुआतीं तुम्हारी आत्मा से अचानक
तुममें छिपी हर बात आने लगती है बाहर फिर से
ताकि तुम्हारा यह नीला-पीला नवजात मनुष्य पा सके पोषण!
ओ श्याम-सुनहरे का फेरा लगाने वाले वृत्त की
भव्य, उर्वर और चुम्बकीय सेविका
उठो, अगुवाई करो और लो अधिकार में इस सृष्टि को
जो इतनी समृद्ध है जीवन में कि उसका उत्कर्ष नष्ट हो जाने वाला है
और यह उदासी से भरी है ।
अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद : मधु शर्मा