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प्रगटीं राधा रावल में / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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प्रगटीं राधा रावल में बृषभानू-कीर्ति-दुलारी।
 राधा व्रज की ठकुराइन, अभिराम श्याम की प्यारी॥
 राधा आह्लादिनि देवी नित माधव पर बलिहारी।
 राधा माधव की आत्मा, माधव से कभी न न्यारी॥

 राधा नित रास-रसेश्वरि, माधव नित रासबिहारी।
 राधा-माधव की लीला शुचि, सत्य, नित्य अविकारी॥
 राधा अर्पण की मूरति, हैं श्याम समर्पण-कारी।
 राधा आराधन-रत नित, प्रिय राधा आराधनकारी॥

 दोनों दोनों के प्रेमी, प्रेमास्पद रस-भंडारी।
 नित एक तव दो तन हैं, मधु लीला-रस-बिस्तारी॥