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प्रजातन्त्र की आंख से / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
तीन गधे
एक आदमी
बाकी तमाशबीन
कहीं भी
भारत का एक सीन।
आदमी गधों को
अनुशासन पर्व में ला रहा है
गधों को सिधाते-सिधाते
खुद भी गधा बना जा रहा है
बाकी तो तमाशबीन हैं
वे न गधों में
न आदमियों में
तमाशबीनों की जमात अलग है
अब इस सारे दृश्य को
प्रजातन्त्र की आंख से देखो।