भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रवचन / शरद कोकास
Kavita Kosh से
यह अचानक नहीं होता
कि कानों में पड़ रहे प्रवचनों के स्वर
मन को दिलासा देने लगते हैं
दिखाई देने लगते हैं
मोक्ष शब्द के विलुप्त अर्थ
मंत्रों के नाद
केवल कानों से नहीं टकराते
मन की कमज़ोर परतों पर प्रहार करते हैं
चाशनी में लिपटी आवाज़
आपकी पलकों पर अटके
आँसुओं को पहचान लेती है
हौले हौले सर थपथपाती है
गुम हो जाती है वह ताक़त
जो किसी नाजु़क पल में भी
आपको भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ती थी
दीमकें भीतर ही भीतर
खोखला कर देती हैं विश्वास
ऐसे में सुबह सुबह टी.वी. पर
एक हॉरर शो शुरू होता है
और उसके प्रसारण से पूर्व
कोई वैधानिक चेतावनी नहीं दी जाती।
-2000