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प्राण में गुनगुना रहा है कोई / गुलाब खंडेलवाल

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प्राण में गुनगुना रहा है कोई
फिर मुझे याद आ रहा है कोई

गीत को पंख लग गए जैसे
प्रेरणा बनके छा रहा है कोई

ज्योति किसकी है दूर अम्बर में!
क्षुद्र अणु में समा रहा है कोई

कोई है दृश्य, कोई द्रष्टा है
और परदा उठा रहा है कोई

हमने माना की मौत है हर साँस
फिर भी हमको जिला रहा है कोई

देखता हूँ जिधर, उधर मैं हूँ
अब कहाँ दूसरा रहा है कोई!

देखिये खोलके आँखें तो ज़रा
सामने मुस्कुरा रहा है कोई

आज होँठों पे खिल रहे हैं गुलाब
मेरी ग़ज़लों को गा रहा है कोई