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प्रिया-प्रीतम दोउ करत किलोल / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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प्रिया-प्रीतम दोउ करत किलोल।
रूप-उजागर नागरि-नागर बोलत मधुरे बोल॥
हास-बिलास करत दोउ रसमय, प्रीति न हिएँ समात।
श्रमित, हार नहिं मानत कोऊ, करत मधुर दोउ घात॥
निभृत निकुंज पुंज-सुख-माधुरि रस-स्वामिनि-रसराज।
तन-मन-प्रान अभेद, अलौकिक क्रीिडत नित नव साज॥