भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेमकविता / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिसने दिया
लिया भी उसी ने।
काहे का दुःख
अगर ले-ले कोई
अपनी दी हुई चीज़ :
कहाँ थी उम्र अपनी?
कहाँ था सुख?
दुःख तक अपना कहाँ था भला?
ज्ञान कहाँ था अपना?
कहाँ थी हँसी?
रुदन कहाँ था अपना?
जिसका था ले गया वही।


रचनाकाल : 1991 विदिशा