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प्रेम करती बेटियाँ / सविता सिंह
Kavita Kosh से
आज भी बेटियाँ कितना प्रेम करती हैं पिताओं से
वही जो बीच जीवन में उन्हें बेघर करते हैं
धकेलते हैं उन्हें निर्धनता के अगम अन्धकार में
कितनी अजीब बात है
जिनके सामने झुकी रहती है सबसे ज़्यादा गरदन
वही उतार लेते हैं सिर