प्रेम जल से भरा शुद्ध मन चाहिये / रंजना वर्मा
प्रेम जल से भरा शुद्ध मन चाहिये
हो सदा साथ जो वो सजन चाहिये
नाप लें विश्व को हैं उड़ानें वही
पंछियों को खुला वो गगन चाहिये
अब कलाई न सूनी रहे भाई' की
घर में प्यारी सभी को बहन चाहिये
एक हिम्मत भरा चाहिये हौसला
जो दिलों में जले वो अगन चाहिये
भावना की अहिल्या युगों से पड़ी
मुक्ति हित रामजी का चरन चाहिये
नीर सरिता बहाती रहे सर्वदा
पत्थरों से उसे भी पतन चाहिये
ढूंढती है सुमन नित्य मधु मक्षिका
पुष्प कलियों भरा इक चमन चाहिये
वृद्ध माता पिता की करे अर्चना
उस श्रवण के सरीखा सुअन चाहिये
केतु ग्रसता रहा चन्द्रमा को सदा
इसलिये चन्द्र में बांकपन चाहिये
जुगनुओं ने भी रोशन किया घोंसला
पांव को अब न कोई थकन चाहिये
भूमि यह प्राण से प्रिय रहे सर्वदा
ध्वज यही तन का मेरे कफ़न चाहिये