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प्रेम / मरीना स्विताएवा
Kavita Kosh से
खंजर? आग?
धीरे से।
इतनी ज़ोर से बोलने की क्या ज़रूरत!
चिर-परिचित यह दर्द
जैसे आँखों के लिए हथेली,
जैसे होंठों के लिए
अपने बच्चे का नाम।
रचनाकाल : 1 दिसम्बर 1924
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह