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फ़सील-ए-दर्द को मैं मिस्मार करने वाली हूँ / सिया सचदेव

फ़सील-ए-दर्द को मैं मिस्मार करने वाली हूँ
मैं आँसुओं की नदी पार करने वाली हूँ

मुझे ख़ुदा की रज़ा से है वास्ता हर दम
मैं ख़ुदनुमाई से इंकार करने वाली हूँ

ये उसकी मर्ज़ी कि इक़रार वो करे न करे
मैं आज ख़्वाहिशे इज़हार करने वाली हूँ

वो जिसने की है हमेशा मुखालिफ़त मेरी
उसी को अपना मददगार करने वाली हूँ

वफ़ा की राह में ख़ुद को तबाह कर के मैं
तमाम शहर को बेदार करने वाली हूँ

कोई न डाले निगाह-ए-ग़लत के मैं अपने
निहत्थे हाथों को तलवार करने वाली हूँ