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फ़िक्रे-जानां गया, मलाल गए / ध्रुव गुप्त

फ़िक्रे- जानां गया, मलाल गए
उनके जाने से सौ बवाल गए

एक दफ़ा लौटकर नहीं देखा
आप भी क्या गए कमाल गए

बंद कमरे में मर गई चिड़िया
इतना सामान लोग डाल गए

सियाहियों में रोशनी का पता
हमने पूछा था आप टाल गए

छंट गई भीड़, थम गए नारे
झंडियां रह गईं, सवाल गए

कभी बंजर नहीं हुई है ज़मीं
लाख सूखे पड़े, अकाल गए

अपनी दुनिया बदल गई होती
सोचने में हज़ार साल गए