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फागुन की संध्या में आज, ओ ! मेरे चंद्र प्रकाश / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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ओ आमार चाँदेर आलो आज फागुनेर संध्या काले
धरा दिएछ ये आमार पाताय पाताय डाले डाले


डाल डाल पात पात
आए पकड़ में फैलाए हास ।।
लाता जो गान ज्वार तारों के बीच
आँगन में आज वही मेरे उतरा—
प्राणों के पास ।।
कली कली खिली आज तेरी हँसी से
मत्त हुआ फूलों से दखिन वातास ।।
शुभ्र, अरे, कैसी उठाई हिलोर,
प्राणों को ठगा भरा कैसा उल्लास ।।

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 44 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)