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फागुन में कुहरा छाया है / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

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फागुन में कुहरा छाया है ।
सूरज कितना घबराया है ।।

अलसाये पक्षी लगते हैं ।
राह उजाले की तकते हैं ।।

सूरज जब धरती पर आए ।
तब हम दाना चुगने जाएँ ।।

भुवन भास्कर हरो कुहासा ।
समझो खग के मन की भाषा ।।

बिल्ली सुस्ताने को आई ।
लेकिन यहाँ धूप नही पाई ।।

नीचे जाने की अब ठानी ।
ठण्डक से है जान बचानी ।।

बच्चों से वह बोली म्याऊँ ।
बिस्तर में जाकर छिप जाऊँ ।।