फिर तिमिर से इस तरह लड़ने लगी।
लो किरन प्राची-शिखर चढ़ने लगी॥
तोड़ कर तम की हजारों बंदिशें
कल्पना की लता-सी बढ़ने लगी॥
यूँ अँधेरों ने डराया तो बहुत
थाम कर जिद राह पर अड़ने लगी॥
अपनी ही कठिनाइयों से हौसला
पा विपद के कूप से कढ़ने लगी॥
चुभ गयी थी कंकरी जो पाँव में
रत्न बन कर मुकुट में जड़ने लगी॥
कामना जो थी नहीं पूरी हुई
आँख में बन किरकिरी गड़ने लगी॥
ज़िन्दगानी फिर खुशी के वास्ते
कुछ बहाने फिर नये गढ़ने लगी॥