फिर भी पहुँचे नहीं धाम तक
हम सुबह से चले शाम तक
अन्वरत नाम की चाह में
हो गए लोग बदनाम तक
आप तो यार, कुछ भी नहीं
हार जाते हैं ‘सद्दाम’ तक
वे बड़े कूटनीतिज्ञ हैं
हँस के सहते हैं इल्ज़ाम तक
काम से हमको रोटी मिली
इस लिए हम गए काम तक
एक ही रत्न अनमोल था
हारकर आ गया दाम तक
आजकल नृत्य के नाम पर
खूब प्रचलित हैं व्यायाम तक.