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फिर वो मौसम न सुहाने आये / सिया सचदेव

फिर वो मौसम न सुहाने आये
दरमियाँ कितने ज़माने आये

काश टूटे तो किसी तौर जमूद
कोई दीवार गिराने आये

रंज ओ ग़म पर ये तमाशाई मिरे
जश्न मातम का मनाने आये

मेरी ख़ुद्दारी ने मुँह मोड़ लिया
मेरे क़दमों पे ख़ज़ाने आये

घर किराये का है फ़ानी दुनिया
चार ही दिन तो बिताने आये