भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर से वही हालात हैं इमकाँ भी वही है / 'शहपर' रसूल
Kavita Kosh से
फिर से वही हालात हैं इमकाँ भी वही है
हम भी हैं वही मसअल-ए-जाँ भी वही है
कुछ भी नहीं बदला है यहाँ कुछ नहीं बदला
आँखें भी वह ख़्वाब-ए-परेशाँ भी वही है
ये जाल भी उस ने ही बिछाया था उसी ने
ख़ुश ख़ुश भी वही शख़्स था हैराँ भी वही है
ऐ वक़्त कहीं और नज़र डाल ये क्या है
मुद्दत के वही हाथ गिरेबाँ भी वही है
कल शाम जो आँखों से छलक आया था मेरी
तुम ख़ुश हो कि उस शाम का उनवाँ भी वही है
हर तीर उसी का है हर इक ज़ख़्म उसी का
हर ज़ख़्म पे अंगुश्त ब-दंदा भी वही है
‘शहपर’ वही भूला हुआ क़िस्सा वही फिर से
अच्छा है तिरी शान के शायाँ भी वही है