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फुटकर अशआर/ अजय अज्ञात

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1 हर किसी से है नहीं रिश्ता मिरा
पर सभी से राब्ता है कुछ न कुछ

2 क़़ाफिया पेमाई करने से ग़ज़ल बनती नहीं
लाज़मी है पेश करना एक अच्छा शे'र भी

3 रुत घटाओं का भले तकदीर में तेरी न हो
पर पसीने से ‘अजय' क़िस्मत के गुल खिल जाएंगे

4 मौत की आँधी से रोके कब रुका
दोस्तो ये ज़िंदगी का कारवाँ

5 सब से ऊँचा ओह्दा है माँ बाप का
इन के पाएनाज़ पर सज़दा करो

6 ठेस लगने पाए न दिल को ज़रा
आबगीनों की तरह नाजुक है ये

7 झाँक कर देखो तो आँखो में ज़रां
तैरते हैं ख़्वाब कितने अश्क में

8 मुट्टियों में कैद कर तूफां को हम ने
ज़िंदगी की लौ कभी बुझने नहीं दी

9 जिस तरफ देखो यहाँ इंसानियत
बिक रही है औने-पौने भाव में

10 हमसफर अपने ग़मों को मैं बना
ढूंढने निकला हूँ छोटी-सी खुशी

11 जब आमद होती है नेक खयालों की
कुछ ही पल में बन जाती है एक ग़ज़ल

12 अब किताबे ज़िंदगी का दोस्तो
पढ़ रहा हूं आखिरी अध्याय मैं

13 फितरतों में प्यार को शामिल करो
इस जहां को रहने के काबिल करो
रात दिन रह कर ग़मों के बीच में
मुस्कुराने का हुनर हासिल करो

14 रफ़्तारफ़्ता आ ही जाएगा मुझे भी कुछ हुनर
रहबरी में आप की ग़ज़लें अगर कहता रहा

15 वो था मुहीत मेरे खयालों पे इस कदर
तुझ को तमाम रात ही मैं सोचता रहा

16 खाकसारी से मिले जो मुस्कुरा कर राह में
रफ़्तारफ़्ता वो ही मेरे दिल के महमां हो गए

17 आप को देखा है जब से इक नज़र ऐ हमनशीं
नूर से मामूर है उस दिन से दिल का ये चमन

18 दुआएं नेक देता है सभी के वास्ते दिल से
नहीं है आम इंसां वो जमीं पर इक फरिश्ता है

19 देख कर उसको मुझे ऐसा लगा
ज्यों जमीं पर इक फरिश्ता आ गया

20 अजब कुछ बात है तुझ में हम ने आजमाई है
तसव्वुर करते ही तेरा ग़ज़ल हो जाती है पूरी

21 दो फूल हैं इक डाल के लेकिन मुकद्दर देखिये
इक फूल है पैरों तले इक गेसु ए लैला में है

22 सत्य कहने से भला कब चूकता है आइना
झूठ के मुँह पर हमेशा थूकता है आइना

23 मौत से कह दो कि हम मसरूफ हैं
आज मरने की नहीं फुरसत हमें

24 नुक्ताचीनी करते रहते दोस्त सब
शे'र मेरे गुनगुनाते हैं अब

25शाइरी है शौक मेरा दोस्तो
रास आती हैं मुझें तन्हाईयाँ