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फूलों का एक शहर कोई मुझको तलाश दो / ईश्वर करुण
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फूलों का एक शहर कोई मुझको तलाश दो
जी जाऊँ जिन्दगी जो बस इतनी सी आश दो।
कितनी है चीड़-फाड़ की रस्मों अदायगी
अब भी तो रहम करके तमन्ना की लाश दो।
तुम ले लो सब अलफाजे-लोगदे है मुझे कुबूल
जी लूँगा मैं खुशी से बस इक लफ्ज ‘काश’ दो ।
मेरी तपिश सहेगा कहाँ गुच्छे हरसिंगार
तपते हुए बदन को दहकता पलाश दो।
हल्की सी है उम्मीद मिलेंगे वफा के फूल
उस शहर के पत्थर में गर मुझको तराश दो।
थोड़ी सी गवाही का है बस मुंतजीर करुण
मेरा नाम अपने हाथ से बुत पर खराश दो।