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फूल अब शाख़ से झड़ता-सा नज़र आता है / गुलाब खंडेलवाल
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फूल अब शाख़ से झड़ता-सा नज़र आता है
ठाठ पत्तों का उजड़ता-सा नज़र आता है
और ले चल कहीं, ऐ दोस्त! हरेक घर से यहाँ
एक कंकाल उघड़ता-सा नज़र आता है
दूरियाँ लाख हों, मिलते ही निगाहें उनसे
प्यार पहले का उमड़ता-सा नज़र आता है
इसके आगे भी कोई राह गई होगी ज़रूर
हर मुसाफ़िर जहां अड़ता-सा नज़र आता है
यों तो खिलते हैं उन्हें देखके आँखों में गुलाब
दिल में काँटा कहीं गड़ता-सा नज़र आता है