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फूल जब कोई बिखरता है तो हँस देते हैं / 'मुमताज़' मीरज़ा
Kavita Kosh से
फूल जब कोई बिखरता है तो हँस देते हैं
दर्द जब हद से गुज़रता है हँस देते हैं
पर्दा-ए-ज़ेहन पे माज़ी के झराकों से कभी
एक चेहरा सा उभरता है तो हँस देते हैं
सुब्ह तक जलना पिघलना है हमारी क़िस्मत
रंग-ए-शब यूँ जो निखरता है तो हँस देते हैं
आगही भूलने देती नहीं हस्ती का मआल
टूट के ख़्वाब बिखरता है तो हँस देते हैं
ज़िंदगी जोहद-ए-मुसलसल है हरासाँ क्यूँ हो
वलवला जब कोई मरता है तो हँस देते हैं