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फूल सूखा हुआ मकरन्द मगर बाकी है / रंजना वर्मा
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फूल सूखा हुआ मकरंद मगर बाकी है।
मिट गया है तिलक सुगंध मगर बाकी है॥
तुमने हमको है बहुत दूर कर दिया खुद से
वायदों के कई अनुबंध मगर बाकी है॥
कोशिशें कीं बहुत भुलाने की इक दूजे को
दिलों में प्यार के सम्बंध मगर बाकी हैं॥
उम्र भर होगी न चाहत ये कभी शर्मिंदा
चाहतों पर कई प्रतिबंध मगर बाकी हैं॥
जिये जाते हैं जमाने के हर इशारे पर
स्वार्थ कर्तव्य के कुछ द्वंद्व मगर बाकी हैं॥
धर्म कुछ जाग गया और मनुजता जागी
यों अनाचार हुए बन्द मगर बाकी हैं॥
गीत क्या गाएँ भला तान चुरा ली तुमने
स्वर नहीं शब्द नहीं छंद मगर बाकी हैं॥