भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फूल होके / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूल हो के
टहनियों की छातियाँ उगने लगी हैं
गीत मेरे
अब न खा जाना कहीं धोखे
फूल हो के

रंग आए हैं
लुभाने पाँव लेकर
जिस तरह
मल्लाह आए नाव लेकर

(इन्द्रधनुष वातावरण में
खो न जाना फूल हो के)
गीत मेरे
बड़ी मुश्किल से तुम्हें
मोड़ा गया धूप ढो के