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फ्रिज / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
Kavita Kosh से
बाबा जी का रेफ्रीजेटर,
लाल रंग का बड़ा सलोना ।
किन्तु हमारा है छोटा सा,
लगता जैसे एक खिलौना ।।
सब्जी, दूध, दही, मक्खन,
फ्रिज में सुरक्षित रहता ।
पानी रखो बर्फ जमाओ,
मैं दादी-अम्माँ से कहता ।।
ठण्डी-ठण्डी आइस-क्रीम भी,
इसमें है जम जाती ।
गर्मी के मौसम में कुल्फी,
बच्चों के मन को भाती ।।
आम, सेब, अंगूर आदि फल,
फ्रिज में रखे जाते हैं ।
ठण्डे पानी की बोतल,
हम इसमें से ही लाते हैं ।।
इस अल्मारी को लाने की,
इच्छा है जन-जन में ।
फ्रिज को पाने की जिज्ञासा,
हर नारी के मन में ।।
घड़े और मटकी का इसने,
तो कर दिया सफ़ाया है ।
समय पुराना बीत गया,
अब नया ज़माना आया है ।।