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बंदूक / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
'गुब्बारे ले लो’ 'गुब्बारे ले लो’ के स्वर
अब गलियों में नहीं गूंजते
गुब्बारे वाले बेचने लगे हैं बंदूकें आजकल
क्योंकि अब बच्चे गुब्बारों से नहीं
बंदूकों से खेलने लगे हैं आजकल