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बंधुआ / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
कच्ची दीवार के साए में बैठे
एक बंधुआ की आंखों में
क्या सपना होगा?
या प्रश्नों का सिलसिला
अन्तहीन।
कच्ची दीवार के पीछे
कहीं आसपास
बंधुआ का संसार होगा।
कच्ची दीवार किसी भी दिशा में गिरे
टूटेगा बंधुआ खुद
या फिर उसका संसार
दोस्त!
कच्ची दीवार यह बात जानती है?
कच्ची दीवार नहीं टूटती
नोकीले बाणों से
कच्ची दीवार टूटती है
सिर्फ सहलाने से
वह हाथ पहचानती है
पहचानती है कच्ची दीवार
बंधुआ की पीठ
और उसका संसार भी।
बंधुआ के पास
सिर्फ बीड़ी है
बंधुआ बीड़ी दीवार पर मारता है
दीवार पर उग आती है एक इबारत-
मेरा भारत महान!