भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बड़ा ही बेश-क़ी़मत था बड़ा था काम का काग़ज़ / अनु जसरोटिया
Kavita Kosh से
					
										
					
					बड़ा ही बेश-क़ी़मत था बड़ा था काम का काग़ज़
ख़ुदा जाने मेरे हाथों से कैसे उड़ गया काग़ज़
पुराने काग़ज़ों को मैं ने देखा तो मिला काग़ज़
किसी युग में तुम्हारे हाथ का लिक्खा हुआ काग़ज़
वफ़ाओं को हमारी क्यूं परखता है तू रह रह कर       
हम अपनी जान तेरे नाम लिख देते हैं ला काग़ज़
वसीयत में मेरे अब्बू ने दे दी सब ज़मीं मुझ को
ज़माने भर की ख़ुशियां कर गया मुझको अता काग़ज़
किसी दिन प्यार का  इज़हार  फरमायेंगे वो ख़त में
हमारे नाम  आयेगा किसी  दिन  ख़ुशनुमा काग़़ज़
लिखा अपने लहू से हम ने इक इक हर्फ़ काग़ज़ पर
उसे भेजा दिली  जज़्बात  में  ड़ूबा  हुआ काग़ज़
सुपुर्दे-डाक तुम करते  हमारे   नाम  गर  चिट्ठी
हमारे नाम भी लाता  किसी दिन डाकिया काग़ज़
	
	