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बड़ी इख़्लासमंदी से सभी महमां बुलाए हैं / अजय अज्ञात

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बड़ी इख़्लासमंदी से सभी महमां बुलाए हैं
हमारे इक बुलावे पर फरिश्ते चल के आए हैं

हुई हैं रहमतें जब से बुजुर्गों की ‚ अदीबों की
हमारी खुशनसीबी के सितारे जगमगाए हैं

बहुत मक़्बूल शाइर हैं अदब ओ इल्म के सारे
क़लम ने वाकई इन की कमाले फ़न दिखाए हैं

मुहब्बत से‚ मुरव्वत से सुना कर शे'र कुछ सच्चे
दिलों को जीत लेने का इरादा कर के आए हैं

कहे तो इक इशारे पर छिड़क दें जान हम इस के
कि हम ने ज़िंदगानी के बहुत अहसां उठाए हैं

भटकते नौजवानों को अदब के इक मसीहा ने
सदाकत के‚ शराफत के सही रस्ते दिखाए हैं

हमारे पास है केवल दुआओं की जमापूंजी
बिना मालो मताअ हम ने मज़े में दिन बिताए हैं

कमाया है सवाबों को ‘अजय' ने शाइरी कर के
बना कर पुल मुहब्बत के दिलों से दिल मिलाए हैं