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बड़े व्यभिचारी कुलकानि तजि डारी / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

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बड़े व्यभिचारी कुलकानि तजि डारी ,
निज आतमा बिसारी अघ ओघ के निकेत हैँ ।
जटा सीस धारैँ मीठे बचन उचारैँ न्यारे ,
न्यारे पँथ पारैँ सुभ पँथ पीठ देत हैँ ।
गावत कहानी बेद भेद की न मानी ,
ऎसे उमर कहानी होत आए बार सेत हैँ ।
कवि ठकुराई मेँ बिराग की बड़ाई करैँ ,
माई माई करिके लुगाई करि लेत हैँ ।

रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।