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बदलाव / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

मैं चुप नहीं बैठ सकती
पर लडऩा भी नहीं चाहती
मैं किसी भी मौसम में रुकना नहीं चाहती
पर जलना भीगना ठिठुरना भी नहीं चाहती
मैं पाना तो बहुत कुछ चाहती हूँ
पर पाने के लिए कुछ भी खोना नहीं चाहती
मैं आसमान तक जाना चाहती हूँ
पर उडऩा नहीं चाहती
मैं छूना तो धरती के उस छोर को भी चाहती हूँ
पर एक कदम चलना नहीं चाहती
मैं चाहती हूँ कोई बड़ा उलट फेर
पर उसके लिए मैं करना कुछ नहीं चाहती
सिवाय कविता लिखने के
कविता के साथ, काम भी करना होगा बदलाव के लिए