भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरवै रामायण / तुलसीदास/ पृष्ठ 2

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरवै रामायण बालकाण्ड आरंभ
    
 ( पद 1 से 5 तक) ,
(1)
बड़े नयन कुटि भृकुटी भाल बिसाल।
तुलसी मोहत मनहि मनोहर बाल।।ं।1।
(2)
कुंकुम तिलक भाल श्रुति कुंडल लोल।
काकपच्छ मिलि सखि कस लसत कपोल।2।
(3)
भाल तिलक सर सोहत भौंह कमान ।।
मुख अनुहरिया केवल चंद समान।3।

(4)
तुलसी बंक बिलोकनि मृदु मुसुकानि।
कस प्रभु नयन कमल अस कहौं बखानि।4ा

(5)
चढ़त दसा यह उतरत जात निदान।।
कहौं न कबहूँ करकस भौंह कमान।5।
 

अगला भाग >>