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बर्षागमन / प्रेमघन
Kavita Kosh से
बर्षागम मैं बड़ी बड़ी आँधी जब आवैं।
नमित द्रुमन साखन तब चढ़ि चढ़ि झोंका खावैं॥
गिरैं, परैं पर तनिक न कुछ चित चिंता आनैं।
पके रसाल फलन लूटैं चखि आनंद मानैं॥
रक्षक प्यादा रहत सदा यद्यपि हम सब संग।
पैंतिह सों छटि निकरि भजत हम सब करि सौ ढंग॥
पता लगावत जब लगि वह आवत ऐसे थल।
तब लगि पहुँचत कोउ दूजे थल पर बालक दल॥
जब कोऊ बिधि वह पहुँचै वा दूजे थल पर।
तब लगि घर पर डटि हम पूछैं गयो वह किधर॥