बहुत भरमे इस सफ़र में
पूछ लो तुम शहर भर में
शोर था बेगानगी थी
गली कूचे में, डगर में
ख़ौफ़-सा कुछ काँपता था
हर कंगूरे की नज़र में
आइए तस्लीम कर लें
यह उदासी ही मेहर में
ग़ज़ल कहना बहुत मुश्किल
है सलिल छोटी बहर में
(रचनाकाल : 2001)
बहुत भरमे इस सफ़र में
पूछ लो तुम शहर भर में
शोर था बेगानगी थी
गली कूचे में, डगर में
ख़ौफ़-सा कुछ काँपता था
हर कंगूरे की नज़र में
आइए तस्लीम कर लें
यह उदासी ही मेहर में
ग़ज़ल कहना बहुत मुश्किल
है सलिल छोटी बहर में
(रचनाकाल : 2001)