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बहुत हमने खोया, बहुत हमने पाया / गुलाब खंडेलवाल


बहुत हमने खोया, बहुत हमने पाया
जो सच पूछिए फिर भी जीना न आया

बिखरती गयी रंग की फुलझड़ी-सी
ये किसने बहारों का घूँघट उठाया!

जहाँ से हुई थीं अलग अपनी राहें
वहीं से हुई एक दोनों की छाया

किसीकी तड़प, बेबसी, कुछ न पूछो
भुला भी चुका है, भुला भी न पाया

गुलाब! एक दुनिया में घायल नहीं तुम
नहीं किसको काँटों ने हँसना सिखाया!