भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाँस के बाँसुरिया रे, बड़ी गुण तोर रे / भवप्रीतानन्द ओझा
Kavita Kosh से
झूमर
बाँस के बाँसुरिया रे, बड़ी गुण तोर रे
हाँ रे बाँसी। नाशले जाति-कुल मोर रे
तोर शब्दें बाँसी! भेले मति भोर रे
हाँ रे बाँसी! चितें जागे कालिया किशोर रे
मन उचटाबे रे, यौवना करे जोर रे
हाँ रे बाँसी। छट दे टपके नैना लोर रे
भवप्रीता कहे बाँसी! होय गेले शोर रे
हाँ रे बाँसी! तोहीं बाँसी राधा चितचोर रे।