बाइसवीं सदी में / लक्ष्मीकान्त मुकुल
जब धुआंसे की तरह शहर
छा जाएंगे गाँव के क्षितिज पर
तुम तुम फर्क नहीं कर पाओगे के भेद
तब बच्चे जानकर चौक जाएंगे
घोंटते हुए एक टिकिया में भोजन के सारे तत्व
कि कभी मिट्टी के घरों में जलते थे साझे चूल्हे
कई पीढ़ियों के लोग साथ रहते थे झोपड़े में
रिश्तों के मधुर सम्बंधों का होता था ताना-बाना
किसी एक के लू लगते हैं मंद पड़ जाती थी घर की सारी खुशियाँ
बाइसवीं सदी में जब नित नई तकनीकों से
दुनिया हो रही होगी संचालित
भंग हो चुके होंगे परिवार, विवाह, सम्बंध के पुराने पड़ चुके मानक
मनुष्य से बढ़कर रोबोट की होगी मांग
पेपरलेस, कैशलेस से आगे जाकर नैनो तकनीक की पूंछ पकड़े
सभ्यता कि ऊंचाइयाँ छू रहे होंगे लोग
तब अचरज से भर जाओगे तुम जानकर
कि यहीं गाँव किनारे एक स्वच्छ जलधार वाली बहती थी नदी
जिसके किनारे सब्जियाँ उगाता एक किसान कवि
मेडों पर बैठकर लिखता था खीझ भरी कविताएँ
यह वह समय होगा जब मिलावटी दूध की तरह मिलते होंगे लोग एक दूसरे से
गलबहियाँ, आलिंगन, स्पर्श, चुंबन, थिरकन को भूल गए होंगे लोग बाग
जीवन में क्षीण पड़ गए होंगे नवोरस नवरस, चारों भाव पंचतत्वों के महत्त्व, ज्ञान-कर्म इंद्रियों के उपयोग
भौचक्के रह जाएंगे वे यह जानकर कि कभी
लिखे जाते थे तन्मयता से प्रेम पत्र
सरकंडे की स्याही तंग पड़ जाती थीआंसुओं की बूंद से, विरह-वेदना-तड़प जैसे शब्द अबूझ लगेंगे उन्हें
यह वैसा समय होगा जब एक बच्चा पूछेगा अपनी माँ से कि मेरे जन्म के समय किसके साथ थी तुम
एक अधेड़ फुर्सत का पल खो जाएगा यह याद करने के लिए कि उसके साथ सोई एक स्त्री के बच्चे कितने बड़े हो गए होंगे
सेम की लत्तरों—सा छाये अनुवांशिक रिश्ते समय की लू में जल गए होंगे
ददियौरा, ननियौरा, फुफुऔरा के जुड़ाव को
माने जाने लगा होगा पिछड़ेपन का संकेत
नए सामाजिक बंधनों की डोर में बंध रही होगी दुनिया
वह समय होगा जब
इंसान मंगल व चांद पर बस आ चुका होगा बस्तियाँ एलियन से हो गए होंगे उसके मधुर सम्बंध
वैज्ञानिक इजाद कर चुके होंगे कालक्रम को नियंत्रित करने के तरीके, मेडिकल साइंस खोज लिया होगा जीवात्मा के प्रत्यारोपण के सिद्धांत, मानव शरीर में लेजर किरणों द्वारा चिप्स डालकर अमरत्व प्रदान करने के गुण
तब तक, माउंट एवरेस्ट के माथे पर खुल गए होंगे रेस्तरां, अंतरिक्ष शटल पर हो रहा होगा यौन-क्रियाओं का रोमांचक रियल शो, हाइड्रोजन बम को हथेलियों पर लेकर खेलेंगे ताकतवर लोग
बाईंवीं सदी में खो गई होंगी नदियाँ रेतीले तलछटों में
छवों ऋतुओं, बारहमासों के नहीं दिखते होंगे इंद्रधनुषी पग-चिह्न
संघर्ष, मतदान, अधिकार, समानता के अर्थों को भूल गए होंगे लोग
तकनीक के सम्राटों के हाथों में आ गई होंगी राजसत्ताएँ
क्रूरता, प्रताड़ना, दंड-विधान के विकसित हो चुके होंगे आभासी तरीके
इन सब के बरक्स एक बड़ी आबादी
जी रही होगी ढिबरी वाले युग में ही
भूखी, फटेहाल, बेघर, बेकारी से बेचैन
जहाँ चरवाहे भैंस चराते हुए गिल्ली-डंडा खेल रहे होंगे, एक बच्चा फूलों को लोटा के पानी से पटा रहा होगा
एक माँ अपनी बेटी को रोटी बेलना सिखा रही होगी।