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बातों के हेर-फेर में दिख जाएगी तुमको / अमन मुसाफ़िर

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बातों के हेर-फेर में दिख जाएगी तुमको
सच्चाई थोड़ा देर में दिख जाएगी तुमको

जब ध्यान से पढ़ोगे ग़ज़ल कोई भी मेरी
रोटी की शक़्ल शेर में दिख जाएगी तुमको

निर्मल अगर है मन तो पूरी राम-कहानी
'शबरी' के जूठे बेर में दिख जाएगी तुमको

आँखों ने उम्र भर जो सजाकर रखी तस्वीर
यादों के किसी ढेर में दिख जाएगी तुमको

गठरी दुखों की लादे मेरी ज़िंदगी की पीठ
जीवन के इसी घेर में दिख जाएगी तुमको