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बात क्या हुई, कैसे आये? / राजेन्द्र प्रसाद सिंह

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पाहुन, चुपचाप खड़े हो नजर झुकाये;
--बात क्या हुई कैसे आये?
आगे आने में
यह रेतीली कुटिया,
पीछे जाने में
हरियाली की नदिया;
पार के दुआरे पर
काँपती अँगुलियों में
मचलती सिमटने को
एक पूल बगिया....
कागज की डोंगी पर चलो बेकिराये
पहचानी गंध रंग लाये!

यहाँ नहीं मेरी
धड़कनें वहाँ सुनना;
रोज ही सिहन्ता के
शब्दों को गुनना;
बदली ऋतु-शोभा का
आये मेहमान जभी,
दूर, निकल कोई
आभार-गीत बुनना!
सडकों का नंगापन शायद ढँक जाए;
--छनी-छनी धुन स्वरुप पाए!

वहाँ नहीं चलना,
तो रुको नहीं आओ;
छूना है मना, जरा
चेहरा उठाओ.....
लालिमा दुआरे की;
पीयरी दिआरे की,
कलिमा किनारे की
--पीकर मुसकाओ!
हँसी से धुआँ का रंग बदल जाए
-छुई-छुई हवा लौट आये!