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बात होनी थी, होके रही / गुलाब खंडेलवाल
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बात होनी थी, होके रही
हमको दुनिया से खोके रही
वह भले ही हमारे न हों
ज़िन्दगी उनकी होके रही!
रात किसकी लटें खुल गयीं
चाँदनी साँस रोके रही
कुछ न रिश्ता था उनसे, मगर
गाँठ-सी बीच दो के रही!
बचके निकले थे तुम तो, गुलाब!
याद काँटे चुभोके रही