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बादलों की ओट से / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
बादलों की ओट से चाँद मुस्कुरा रहा!
चाँद मुस्कुरा रहा!
आसमाँ समुद्र है, चाँद युद्ध-पोत है;
चाँदनी जहाज़ के दीप का उदोत है;
पंकजों की आँख में धूल झोंकता हुआ,
मेह के अंबार-सा फेंकता हुआ धुआँ,
रश्मियों की गोलियाँ ओट से चला रहा!
पंछियों की लोक में चीख है, पुकार है
चाँदनी चकोर को दे रही अँगार है!
तारकों की मंडली पस्त, बेकरार है;
लूटने के जुर्म में चाँदनी फरार है!
चाँदनी की लाज से चाँद मुँह चुरा रहा!
व्योम है कलिन्दजा, नाग है काली घटा;
नीलिमा फुंकार है, फेन है उडुच्छटा;
रश्मियों की रास है, चाँदनी विलास है,
कालिमा के छत्र पर चाँद ब्रज-हास है!
नाग को नाथे हुए बाँसुरी बजा रहा!
चाँद मुस्कुरा रहा!
चाँद मुस्कुरा रहा!