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बादल घिर आए / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
इतने सारे काम पड़े हैं
छत पर धुले हुए कपड़े हैं
बादल घिर आए
(अचानक बादल घिर आए)
खिड़की खुली हुई है बाहर की
चीज़ें चीख़ रहीं आँगन भर की
ताव तेज़ है मुई अँगीठी का
हवा न कुछ अनहोनी कर जाए
बच्चे लौटे नहीं मदरसे से
कड़क रही है बिजली अरसे से
रखना हुआ पटकना चीज़ों का
पाँव छटंकी ऐसे घबराए
आँखों में नीली कमीज़ काँपी
औऽर भर गया शंकाओं से जी
कमरे में आ, भीगी चिड़िया ने
अपने गीले पंख फड़फड़ाए
कितने-कितने बादल घिर आए