बादळ ऊठ्या हे री सखी / दयाचंद मायना
बादळ ऊठ्या हे री सखी, प्यारे सासरे की ओढ़ पाणी बरसैगा सिर तोड़... बादल
जिसनै दुनियां कह कत्ल की, पहली-पहली रात थी
ऊंचे से चौबारे पै हुई, साजन तै मुलाकात थी
इंद्र नै भी चाह बरसण का, धरती नै भी चाहत थी
योए था महिना सखी, उस दिन भी बरसात थी
इसा पुळ टूट्या री सखी, बहगे नदी-नाळे जोहड़
मोटी-मोटी बूंद भटाभट, फूटण लागे ओळे से
पानी के बहा के आगै, बहगे नाके डोले से
जंगळां के कवाड़ खुलै-मूंदै, ओळे सोळे से
पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण हवा के झकोळे से
इसा रंग लूटा री सखी, दो दिल कट्ठे थे एक ठोड़
वो दिन भी तै वोए था जो आज तलक भी याद सै
जोड़े बिना जीव का जीणा, जिंदगी बरबाद सै
याद-याद मैं जी ल्यूंगी, इस दुख की के म्याद सै
बदलग्या जमाना ईब तै, दुनिया ही आजाद सै
अमृत घूंट्या री सखी, होग्या बातां का निचोड़
‘दयाचंद’ दे ताने बात नै, माप टेक कै, फीत्या जा सै
मरती बरियां देख आदमी, दोनूं हाथां रीत्या जा सै
एक दिन सबनै मरणा होगा, काळ तै के जीत्या जा सै
कल करणा सो आज करले, पल-पल मौका बीत्या जा सै
झगड़ा झूठा री सखी, एक दिन खोई जागी खोड़