भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाबा बासुकीनाथ हम अयलोॅ छी भिखरिया / भवप्रीतानन्द ओझा
Kavita Kosh से
शिव-स्तुति
बाबा बासुकीनाथ हम अयलोॅ छी भिखरिया,
आहां के दुअरिया ना।
अयलौं बड़-बड़ आस लगाय,
होइयोॅ हमरा पर सहाय
एक बेरि फेरि दियोॅ गरीब पर नजरिया,
आहां के दुअरिया ना।
हमन्-बाघम्बर झारि ओढ़ायब
डोरी डमरू के सरिकायब
कखनो झारि बोहारब बसहा के डगरिया,
आहां के दुअरिया ना।
कार्तिक गणपति गोद खेलायब,
कोरा कान्हों पर चढ़ायब
गौरी पारवति से करवैन अरजिया,
आहां के दुअरिया ना।
हम गंगाजल भरि-भरि लायब
बाबा बैजू के चढ़ायब
चन्दन बेलपत्र चढ़ायब फूल केसरिया,
आहां के दुअरिया ना।