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बाहर रह या घर में रह / ध्रुव गुप्त
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बाहर रह या घर में रह
मेरे दिल , बंजर में रह
सहरा जंगल में मत जा
नींद मेरे बिस्तर में रह
हद के बाहर पांव न दे
अपनी ही चादर में रह
बाहर जितना घूमके आ
कुछ अपने अंदर में रह
मंज़िल वंजिल धोखा है
मेरे पांव , सफ़र में रह
तू है खुदा मर्ज़ी तेरी
कंकड़ में, पत्थर में रह
तुमसे दुआ सलाम रहे
दुश्मन मेरे शहर में रह
आंसू है तो गिर भी जा
नदी है तो सागर में रह
अपना जीना मरना क्या
क़ातिल मेरे ख़बर में रह
जैसे दिन जो मौसम हो
तू हर वक़्त नज़र में रह