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बिदुर-घर स्याम पाहुने आये / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(राग हमीर-तीन ताल)

बिदुर-घर स्याम पाहुने आये !
नख-सिख रुचिर-रूप मनमोहन, कोटि मदन-छबि-छाये॥
 बिदुर न हुते घरहि में तेहि छिन, स्याम पुकारन लागे।
 बिदुर-घरनि नहाति उठि धा‌ई नैन प्रेम-रस पागे॥
 भूली बसन न्हात रहि जेहि थल, तनु सुधि सकल भुला‌ई।
 बोलति अटपट बचन प्रेमबस, कदरी-फल ले आ‌ई॥
 छीलत डारत गूदो इत-‌उत छिलका स्याम खवावै।
 बारहिं-बार स्वाद कहि-कहि हरि, प्रमुदित भोग लगावै॥
 तनिक बेर महँ हरि गुन गावत, बिदुर घरहिं जब आये।
 देखि दरस सो कहत, ‘अहह ! तैं छिलका स्याम खवाये’॥
 कर तें केञ्रा झटकि बिदुर घरनी घर माँहि पठा‌ई।
 तनु सुधि पा‌इ सलाज ससंकित, बसन पहिरि चलि आ‌ई॥
 बिदुर प्रेमजुत छीलि छीलिकै केञ्रा हरिहिं खवावै।
 कहत स्याम-वह सरस मनोहर स्वाद न इन महँ आवै॥
 भूखौ सदा प्रेम कौ डोलूँ भगत-जनन गृह जान्नँ।
 पा‌इ प्रेमयुत अमिय पदारथ, खात न कबहुँ अघान्नँ॥