भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिना अब आपके जीना तो साँसें जोड़ना ठहरा / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
बिना अब आपके जीना तो साँसें जोड़ना ठहरा
तड़पना, आह भरना, चीख़ना, सर फोड़ना ठहरा
जो आप आते हैं तो रौनक-सी आ जाती है इस घर में
नहीं तो बस अँधेरे से अँधेरा जोड़ना ठहरा
अकेले आपके ही सर पे कुल इल्ज़ाम क्योंकर हो!
हमें तो हर जगह पत्थर ही पत्थर तोड़ना ठहरा
उन्हें कैसे बताएं क्या है इस आँसू बहाने में
जिन्हें हरदम हँसी के क़हक़हे ही छोड़ना ठहरा!
चुभन काँटों की भी कुछ बस गयी मन में, गुलाब! ऐसी
कि इनको छोड़ना अपने से ही मुँह मोड़ना ठहरा